बुधवार, 27 अप्रैल 2011

रहते जैसे नदिया पानी


  मिल जुल कर रहना तुम ऐसे रहते जैसे  नदिया पानी 
             फडके जब भी आँख समझना  हुई तुम्हारी याद सयानी   
                             
                                 आखे रहे देखती सपने रात्रि दिवस का भेद नही हो
                            प्यार कवच हो संबन्धो का भूल चूक से खेद नही हो
                           कह् न सको  तो पाती  लिखकर दुहरा देना बात बयानी
                   
           ज्ञान प्रेरणा कुछ  पाने की प्रेम भावना खो जाने की    
        एक मांगता  पूर्ण समर्पण दूजा खुद को करता अर्पण 
      ल्क्ष्य एक ही खोना पाना प्रेमी हो या मुनिवर ज्ञानी
                  
                   महल झोंपड़ी रहने वाले हाथों अलग अलग रेखाएँ 
                 कोइ धन  के सागर डूबे  कोई  मन के घाट नहाये 
               संरचना है ऐक सभी की कोई याचक कोई  दानी
           
              लिखो कथानक कोई ऐसा  अन्तरतम संघर्ष जगाये
          जागे जिज्ञासा  आखिर तक प्रश्नों के सन्दर्भ उठाए
         संवादो के द्वार् खोलकर कहने आये पात्र कहानी 

 मिल जुल कर रहना तुम ऐसे रहते जैसे नदिया पानी 
फडके जब भी आँख समझना  करता कोई  याद पुरानी            

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

ज़िंदगी क्या है?

जिंदगी क्या है?
सांसो के चलने का अदभुत अहसास
सागर में तैरती अनबुझी प्यास
जिंदगी क्या हें ?
मांगी हुई मन्नत कहूँ तो दिल डूब जाता हें
सारी ख़ामोशी दांव पर लगाकर भी
देने वाले की दीनता ने इल्जाम बख्श दिए
और बिन मागें मोती से वे इल्जाम
झोली में भरे हम ,वक्त के वायदों से
गुमनाम मंजिल का अतापता पूछते रहे
क्योंलाँघ नही पाए फ़र्ज़ के दायरे, लक्ष्मण रेखा को
इन हरे भरे घावो को समय सहलाएगा
फिर कोइ संस्कार मरहम लगाएगा
और नया समझौता मन बहलायेगा
जिंदगी बहेगी फिर उसी रफ्तार
डूबते किनारे और टूटते कंगार
स्वयं से पूछेंगे
जिंदगी की हलचल में क्या खोया क्या पाया
क्या लिया और दिया
कैसे तू जिया ?
एक अनुत्तर प्रश्न बंद दरवाजे पर दस्तक लगाएगा
उत्तर की आशा में द्वार खुलवाएगा
ज़िंदगी क्या हें?